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नारी के चरित्र को समझना बहुत मुश्किल है ! वो कभी ममता से भरी है तो कभी विकराल, वो कभी सावन का महीना है, तो कभी शरीर को जला देने वाली धूप की तरह ! नारी चरित्र को समझना बिल्कुल ऐसा है, जैसा किसी खजूर के पेड़ से छाया की उमीद करना ! वैसे हमारे देश में इंदिरा गाँधी, कल्पना चावला, जैसी महान नारियो ने जन्म लिया है ! मगर इस वक़्त मेरा विषय अलग है!
अक्सर मैं कुछ लेखिकाओ की रचना पढता हूँ, तो लगता है कि समाज में सबसे ज्यादा बुरा, घटिया और बेईज्ज़त प्राणी पुरुष ही है ( जानवर भी शायद उसे अच्छे हो )! होने वाली हर घटना का जिम्मेवार पुरुष को ही माना जाता है …….
तो इस बार नारी के उन गुणों पर नज़र डाली जाये, जिन्हें अक्सर लोग नज़रंदाज़ कर देते है –
नारी जो काम सबसे अच्छा कर सकती है, वो है – अपनी बात मनवाना ! चाहे वो तरीका कैकेयी का हो या सावित्री का ! जब तक उनकी बात पूर्ण ना हो जाए वो किसी यमदूत की तरह सर पर सवार रहती है !
पुरुष हमेशा गुलाम रहता है, कभी माँ का, कभी बीवी का, तो कभी प्रेमिका का ……………माँ दूध का वास्ता दे कर पुरुष को रोकती है, तो पत्नी ७ फेरो का और प्रेमिका सच्चे प्यार का …………..ज़िन्दगी भर पुरुष इन्ही वास्तो से जुजता रहता है ………………
पुरुष हमेशा अपनी सारी कमाई एक औरत के हाथ में ही रखता है ………
अगर नारी (पत्नी) अनपढ़ भी हो तो कोई फर्क नहीं पढता, मगर पुरुष (पति) हमेशा पढ़ा लिखा होना चहिये,, वरना वो धरती पे बोझ, अन्न का दुश्मन आदि आदि !!!!!!!!!
बाल्यावस्था बहुत अच्छी होती है, युवावस्था मौज मस्ती की परन्तु पतिअवस्था एक ऐसी अवस्था होती है जिसमे पति की वो हालत होती है जो बहुत ही सोचनिए होती है!!!!!!
मेरे एक कवि मित्र ने तो कविता भी लिख दी, बेचारे पुरुषो के ऊपर :
ऑफिस में बॉस की फटकार………..
घर में बीवी की मार ………
मतलब में बच्चे बोले लव यू पापा
वरना वो भी कहे आप हो बेकार …….
चारो तरफ हाहाकार
बेचारा पुरुष, जाये तो जाये कहा ……………
माँ की सुने तो बीवी नाराज़…..
बीवी की सुने तो माँ नाराज़ ………
दोनों की सुने तो बच्चे नाराज़,,,
चारो तरफ हाहाकार
बेचारा पुरुष, जाये तो जाये कहा ………..
किसी को नज़र उठा के देख ले….
तो बीवी का गुस्सा तैयार….
शाम को मार खा के भी हसना पड़े….
चारो तरफ हाहाकार
बेचारा पुरुष, जाये तो जाये कहा ………..
पति से ज्यादा कुत्ते को करे प्यार…..
वाह री किस्मत ……..
पुरुष से तो कुत्ता बेहतर …………
बेचारा पुरुष, जाये तो जाये कहा ………..
हाथ उठाए तो अत्याचारी
चुप रहना उसकी लाचारी
सहमा सहमा सा फिरता है वो
अपने ही घर में
चारो तरफ हाहाकार
बेचारा पुरुष, जाये तो जाये कहा ……………
मुझे अपने मित्र की ये कविता बहुत अच्छी लगी ! शायद ये पुरुषो के जीवन का सच भी हो ! बेचारा पुरुष ( पति) अपने ही घर में कैदी की तरह रहता है………..
देवो ने भी नारी रूप के आगे घुटने टेके है….नारी हमेशा पुरुषो को सताती, रुलाती आई है ……
अभी तो मैं इस खुशी ( क्युकी इसे गम कह कर मैं नारी समाज से पंगा नहीं ले सकता) से वंचित हु, मगर कुछ सालो बाद मेरा भी यही हाल होने वाला है !
अब आप खुद ही सोचो इस समाज में बेचारा कौन ? नारी या पुरुष ……..बेचारा पुरुष ( पति )
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