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मुझे भी शायद मुनीश जी (jagran junction के जाने मने लेखक) की तरह उलटे सोचने और दुनिया से अलग चलने की बीमारी हो गयी है (“आप सब लिखते कुछ हैं और मुझे कुछ और ही समझ आ रहा है: मुनीश…”) …………चलो छोड़ो, महान लोगो की क्या बात करनी, मैं अपनी बात शुरु करता हूँ ……………
अभी कुछ दिनों पहले एक और महान इंसान ने, एक राज्य के लोगो की तुलना भिखारी से कर दी………फिर क्या होना था, चारो तरफ हाहाकार और जन आक्रोश ………………..
बीमारी के कारण मेरे अंदर एक गुण विकसित हुआ है जिसके कारण मैं हर चीज़ और हर बात में अच्छा सोचने की कोशिश करता हूँ ,.,…..और ऐसा ही तब हुआ जब मैंने सुना कि किसी राज्य को भिखारियों के साथ जोड़ा जा रहा है ……जहा सब इस बात से रुष्ट थे, वही मैं अपनी बीमारी के कारण इस बात से खुश था…..
भिखारियों को अक्सर लोग एक अलग दृष्टी से देखते है , ,, जो कम से कम अच्छी तो नहीं होती …………चलो छोड़ो ऐसे लोगो की बात भी क्या करनी ……….
मैं तो भिखारियों के गुणों की चर्चा करने के लिए आया हूँ…….क्युकी मैं तो संतो के कहे अनुसार चलता हूँ …..जैसा की संतो ने कहा है :
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो दिल खोजा आपना, मुझसा बुरा न कोय ॥
जब मैं ही सबसे बुरा हूँ, तो मैं औरो की बुराई कैसे कर सकता हूँ……इसलिए मैं अब सब जगह अच्छाई ढूंढता हूँ…..जैसे एक बार मैं पहले भी उस पव्वे की अच्छाई को जग जाहिर कर चूका हूँ, जिसे सब बुरा कहते है……..और इस बार मैं भिखारियों के गुणों का बखान करना चाहता हूँ ….. ……क्युकी बड़े और अमीर लोग तो आम आदमी की तरफ ही ध्यान नहीं देते, तो इन भिखारियों की तरफ तो क्या ही ध्यान देंगे ………….
अक्सर हम लोग भिखारियों को बेचारा या अभागा कह कर पुकारते है ,,,मगर इनके अंदर की खुबिया सुन कर शायद अगली बार से ऐसा कुछ न कहे,,,,,,,,,
एक आम आदमी जहां सिर्फ अपने धरम और जाति के बारे में सोचता है,….वही भिखारी हर धरम और हर जाति को मानता है….वो सोमवार को शिव भगवन, मंगल को हनुमान जी ………….कहने का अभिप्राय ये है कि वो हर धरम को मानते है……………….
आम आदमी मौसम की परवाह करता है वही ये आपको हर मौसम में कही भी मिल जायेंगे,,,,,,जैसे की बरसात में आप बहार निकलने से डरोगे, मगर ये तो बरसाती मेंडक बन के आप के घर तक पोहच जायेंगे ……..
वारिस को अपना कारोबार सँभालने को कहे ,,,आपके वारिस का जवाब होगा ” रहने दो पापा, आपका कारोबार आप ही संभालो, मैं तो विदेश जाके कोई जॉब या इंडिया में ही कुछ अलग करूँगा…..”, जबकि भिखारियों में पीडी दर पीडी अपने विरासती कारोबार को सँभालने की समझ होती है……….
जहां आम आदमी पूरी ज़िन्दगी अपने बच्चो को पढ़ाने और कामयाब बनाने में लगा रहता है और फिर भी कोई गारंटी नहीं की इन्हें जॉब मिलेगी ही…….वही ये बचपन से ही बिना किसी डिग्री के कमाऊ पूत बन जाते है ……….
जहां आम आदमी टैक्स के बोझ के नीचे दबा होता है , जैसे : वाटर टैक्स, इनकुम टैक्स…..वही वो जितना कमाते है उतना उड़ाते है ,,, नो टैक्स नो टेंशन …….वैसे सुनने में तो ये भी आया था कि बहुत से ऐसे भिखारी भी है,जिन्होंने अपने इसी कारोबार से करोड़ से भी ज्यादा सम्पति इकठा की है ……..
जहाँ आम आदमी ६० वर्ष से अधिक होने पर खुद को असमर्थ समझने लगता है, वही भिखारियों में यही उम्र सबसे ज्यादा कारोबार करती है………..
अदाकारी में तो इनका कोई जवाब ही नहीं ………………
वैसे इस लेख को पढ़ के कुछ लोग मुझे भी कहेंगे आपने ये क्यों नही किया या आप अपनी आने वाली पीडी को इसी काम में लगा देना….तो उन लोगो के लिए बता दूं , कि ये मैंने उन लोगो के लिए लिखा है, जो भिखारियों को किसी दूसरी दुनिया का प्राणी समझते है ……..
मुनीश जी से माफ़ी चाहता हूँ, कि नाम लेने कि मैंने गुस्ताखी कि….और उस महान पुरुष से भी माफ़ी चाहता हूँ जिसने एक राज्य को भिखारियों से जोड़ना चाहा (जब सब ही राज्य के नेता ये कहेंगे की ये भिखारी हमारे राज्य का नहीं, तो क्या ये आसमान से टपके है)……..
मैं हर उस इंसान से माफ़ी मांगता हूँ, जिसे ये मेरा लेख कांटे की तरह चुभे …….
ये लेख मैंने अपनी बीमारी में लिखा है, इसलिए भूल चूक के लिए एक बार फिर से गुस्ताखी माफ़ हो ………………………
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