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सबसे पहले मैं ये कहना चाहूँगा कि कोई भी इस लेख को व्यक्तिगत न ले ……..क्युकी हो सकता है इसे पढने के बाद कई लोग मुझे बहुत भला- बुरा कहे,,,,,,अब मैं लेख शुरु करता हूँ : –
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अभी कल की बात है, ….नवरात्रों का आखिरी दिन..जिस दिन कन्या जिमाई जाती है ………..मैं अपने एक मित्र के यहाँ गया हुआ था…..मेरे घर पे कन्याओ को भोजन जल्दी करा दिया गया था ,,,और उस दिन रविवार भी था ,,,तो मैं अपने इन मित्र के यहाँ चला गया ,,,,,,,,मेरे ये मित्र काफी बड़ी सोसाइटी से तालुख रखते है …….
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कुछ देर में मेरे मित्र के यहाँ कन्याए आनी शुरु हो गयी …….सब कन्याओ ने एक पंक्ति में बैठ गयी ,,,,,,गिनने पर पता चला ये तो 8 ही कन्याए है…..एक कम ……………मेरे मित्र थोडा परेशां हुए कि अब एक कन्या कहा से ………… तभी मेरे मित्र की नौकरानी बोली : साब, मैं अपनी बेटी को बैठा दूं इन कन्याओ के साथ …..
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पागल हो क्या ? और ये बोलते हुवे भाभी जी ( मेरे मित्र की पत्नी) रसोई से बहार आई : लोग क्या कहेंगे ? उन लोगो की बेटी, एक काम करने वाली की बेटी के साथ ! दिमाग सही है आपका ,,,आखिर हम हाई सोसाइटी वाले है ,,,इन लोगो से हमारा क्या मेल ………………
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दुसरे मोहल्ले वाले शर्मा जी की पोती को लेके आओ जल्दी से, मैं पुरे दिन रसोई में नहीं रह सकती …उफ़ ये गर्मी…..
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बुरा मत मानना, तुम्हे तो पता है न हमारी सोसाइटी कैसी है ? यहाँ बात की कैसे खाल निकाली जाती है .…….मैं चुप चाप ये सब देख रहा था,,,…..थोड़ी देर बाद मैं घर आ गया ,,,,,,,,
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अगर होती है, तो हम इस सोसाइटी के डर से इतना भेद-भाव क्यों करते है ?… क्या ये देवी रूप का अपमान नहीं ?.…अगर 9 दिन सच्चे मन से आप माँ भगवती का वर्त रखते और पूजा करते है, मगर आखिर में ऐसी हरकत कर देते है तो क्या वो पूजा सफल हुयी ?
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