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कैसा ये इश्क है ….

Main Aur Meri Tanhai
Main Aur Meri Tanhai
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प्यार,  इश्क और मोहब्बत ..ये वो शब्द है जिनके मायने कोई-कोई ही समझ सकता है …………….हीर-राँझा, लैला-मजनू आदि नाम ऐसे ही आशिको के नाम है…..कोई उन्हें प्रेम पुजारी कहता तो, कोई उन्हें सिरफिरा……..हमारा हिंदी सिनेमा भी प्यार के जादू से अछुता नहीं रहा ………उपन्यास, कहानियाँ और इमारते भी इस जादू का प्रतीक है ,,,,,,,,,,,फिर भी लोगो का एक बहुत बड़ा समूह प्यार को बकवास और भद्दा समझता है,,,,आज भी कई जगह प्यार करने वालो को मौत के घाट उतार दिया जाता है….आज भी प्यार से बढकर धरम, जात-पात और धन-दौलत को देखता है ये समाज ……………..

.एक ऐसे ही युवक की कहानी मैं आपको बताने जा रहा हूँ,,,,

.

आज कल के वक़्त में, तरह तरह की सुविधा है, जिससे नए नए लोगो से जान- पहचान बढाई जाती है…..और ऐसा ही एक साधन है -Facebook…..ये कहानी है आज के युवा वर्ग की,,,जिसे जीवन साथी की तलाश के लिए किसी राह में नहीं बल्कि अपने मोबाइल या कंप्यूटर में खोना पड़ता है…………ऐसे ही एक युवक है दुर्गेश,, जो अपने लिए Perfect साथी चाहता है,,,और मदद लेता है Facebook की…………….एक दिन  दुर्गेश की मुलाकात नंदनी नाम की लड़की से हुयी,,,,दोनों की बातचीत शुरु हो गयी….

धीरे धीरे दोनों बहुत करीबी की तरह बात करने लगे,,,दुर्गेश नंदनी पे आँख बंद कर के विश्वास करने लगा….. और एक दिन –

यार ये क्या आप आप बोलती हो, तुम नही कह सकती हो ?

अच्छा, और अगर कोई बड़ा हो तो ?

.कौन है बड़ा ?

.मैं हूँ बड़ी, तुमसे पुरे 3 साल ………..

.तो क्या हुआ, दोस्ती में कौन सा उम्र देखी जाती है …………..

.मगर दुर्गेश को कब नंदनी से प्यार हो गया, ये उसे भी समझ नही आया और एक दिन उसने बोल दिया :

मैं तुम्हे पसंद करता हूँ ...

एक दोस्त की तरह मैं भी  तुम्हे पसंद करती हूँ ,,,,,,मगर इसे ज्यादा कुछ सोच रहे हो तो भूल जाओ, तुम मुझसे छोटे हो, ठीक है ये तुम्हारे ज़ज्बात है की तुम मुझे पसंद करते हो, मगर ये भी तो सोचो उस सपने का क्या जिसे टूट जाना होता है ………....

दुर्गेश नंदनी से जितना रोमांटिक हो कर बात करता, नंदनी उतने ही रूखेपन से …….जब भी दुर्गेश का मन करता वो नंदनी को दिल की बात बता देता, अगर नंदनी नाराज़ हो जाती तो दुर्गेश तुरंत उसे मना भी लेता,,,कभी दुर्गेश रूठ जाता तो नंदनी उसे मनाती,,,,,,,दोनों की पसंद-नापसंद भी मिलती थी, जिस कारण दोनों एक-दूसरे को समझते भी थे……दोनों के रिश्ते में धीरे धीरे और नजदीकी आने लगी, मगर कहते है न लड़के जहाँ ज़ज्बात से काम लेते है वही लडकियां दुनिया और समाज के बारे में सोच के फैसला लेती है …………..

एक दिन दुर्गेश ने अपने प्यार का इज़हार नंदनी से कर दिया, नंदनी नाराज़ हो गयी….कई दिनों तक, कोई बात नही,,,,फिर एक दिन नंदनी ने दुर्गेश को फ़ोन कर के बोला :

मैं भी तुम्हे प्यार करती हूँ, मगर इस समाज और दुनिया को कौन ,,

उसकी फ़िक्र तुम मत करो …..

जब ये बात नंदनी के घर पे पता चली तो ;

पागल हो गयी है ये लड़की, कितना छोटा है वो इससे, ऊपर से वो पंडित और हम राजपूत, कोई मिलन ही नहीं होता ..

.पापा वो मुझे खुश रखेगा,

.तुझे ज्यादा छुट देने का ही है ये नतीजा ,,

.माँ तू तो समझ, वो मेरे लिए कुछ भी कर सकता है,,,

.अरे इन लडको का यही ड्रामा होता है, शादी के बाद तुझे छोड़ न दिया तो मेरा नाम बदल देना,,,,,और शादी भी करेगा या नहीं, ये भी उपरवाला जाने……..

दूसरी तरफ दुर्गेश के घर पर:

.राजपूत लड़की पसंद आई तुझे, राजपूत आई तो आई, अपने से बड़ी,,,

.पापा आप भी किस ज़माने की बात करते हो, आज कल सब हो जाता है,…

.हां तुने बोल दिया हो जाता है और हो गया…

.मैं मर जाऊंगा मगर शादी उससे ही करूँगा ,,,

.मेरे बेटा तू ऐसी बातें मत कर….

.माँ तो पापा को समझाओ …

.अरे आप ही मान जाओ…

.एक शर्त पे मुझे ये रिश्ता मंजूर है ,,,

.कैसी शर्त,,,,

.दहेज़ कितना मिलेगा ,,,,,,,,,,,

दुर्गेश का मुह खुला का खुला रह गया…………

,दोनों परिवार अपनी जिद्द पे अड़े रहे,, उन्हें अपना मान-सम्मान तो दिख रहा था, मगर अपने बच्चो की खुशी नहीं……..और एक दिन दोनों ने मंदिर में शादी कर ली…..दोनों का परिवार मंदिर पोहच गया और शुरुवात  हुयी उसी ड्रामे की…….

.आज से तू मर गयी हमारे लिए…कोई रिश्ता नही….

.आदि आदि……

नंदनी चुप खडी थी, मगर उसकी आँखों की नमी दुर्गेश को दिख रही थी ……………

.ये देख दुर्गेश बोला:

.ये समाज, जिसकी आप लोग दुहाई दे रहे है, ये समाज दो  लोगो को तो मार सकता है, मगर दो लोगो को मिला नहीं सकता……ये समाज औरो की हिम्मत का उदाहरण तो दे सकता है, मगर अपने परिवार में ये सब होते नहीं देख सकता,,,,ये समाज हीर-राँझा, लैला -मजनू के प्रेम की दास्ताँ तो सुना सकता है, मगर उसे ऐसे प्रेमी युगल अपने परिवार में नहीं चाइये…………..

.बेटा मगर ये तुझसे बड़ी है, और दुसरे धर्मं की भी  है …..

काश ! ये मोहब्बत ये बात समझ पाती की, प्यार भी बन्धनों में बंधा है, मगर ये नादान मोहब्बत इस बात से अनजान है, और रही उम्र की बात तो शारीरिक सुख से ज्यादा जरुरी मानसिक सुख है, हम दोनों एक दुसरे के साथ सुखी है, आप लोग हमे अपनाये या न अपनाये, हमारा बन्धन तो अब सात जन्मो का बंधन बन चूका है ……………

.दुर्गेश – नंदनी  ने सब कुछ छोड़ के एक दुसरे का साथ देने का फैसला कर लिया, उनका परिवार नहीं माना मगर वो फिर भी एक दुसरे के साथ खुश थे,……………

.मैं इस प्रेमी युगल के भविष्य की शुभकामना  करता हूँ …इनके परिवार ने तो इन्हें नहीं अपनाया, मगर आप इनके स्वर्णिम भविष्य के लिए इन्हें आशीर्वाद दे सकते है…..

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