- 59 Posts
- 780 Comments
बरसात का मौसम ..शाम के वक़्त ..मैं और मेरा मित्र दफ्तर से निकल के नुक्कड़ वाली दुकान पे चाय पीने गए …..हम दुकान पे चाय पी रहे थे कि तभी एक बच्चे की सिसकियो ने हमारा ध्यान अपनी और खीचने का प्रयास किया …..हमने देखा : एक छोटा सा बच्चा (यही कोई ४-५ साल उम्र होगी ), हाल्फ पेन्ट में, ऊपर से नंगा शरीर, ठण्ड से सिकुड़ रहा था ……………उसको कापता देख, हमारे मन में दया आ गयी,,,मैंने उसे इशारे से बुलाया, पहले तो वो कुछ संकुचाया, मगर बार बार बुलाने पे वो हमारे समक्ष आ गया …………..नाम क्या है , कहाँ रहता है ? यहाँ क्या कर रहा है ? हमने सवालो की झड़ी सी लगा दी मगर वो कुछ नही बोला, हमारे आखिरी सवाल तेरे माँ-बाप कहा है ? पर उसने प्रतिक्रिया दी :“नहीं है “.……..
.मन में कई सवाल आ रहे थे, आखिर ये यहाँ कैसे आया ? अब इसका क्या होगा ? आदि आदि………
.हमारे चाय पीने का वक़्त समाप्त हो गया और हमे दुबारा दफ्तर में जाना पड़ा ,,,दफ्तर में भी मैं उस मासूम के बारे में ही सोचता रहा ….दफ्तर की छुट्टी के बाद घर जाते हुए मैंने देखा वो बच्चा वही दुकान के किनारे सो रहा था …….
बरसात हुयी, मैंने दरवाज़े की चौखट पे खड़े होके देखा तो सारा मोहल्ला खुश था और खुश हो भी क्यों नही दिल्ली जैसे शहर में बरसात होना ख़ुशी की तो बात है,,,,,,मगर न जाने क्यों मेरी आँखों के सामने बार बार उसी मासूम का चेहरा आ रहा था और मन में बार बार यही ख्याल आ रहा था कि वो मासूम इस बारिश में किस हाल में होगा ……………
.सुबह जब मैंने देखा वो बच्चा वही सो रहा था ……………कई दिन ऐसे ही बीत गए ,,,एक दिन मैंने अपने मित्र से कहा ” यार इस तरह तो ये बच्चा मर जायेगा, इसे किसी अनाथालय में छोड़ आये या किसी संस्था को बता दे इसके बारे में ……….
“भाई इतना वक़्त किस के पास है ,,,पहले अनाथालय छोड़ने जाओ या किसी संस्था को बताओ तो उनके बुलाने पे बार बार जाओ ..रहने दे यार ………..
.एक इन्सान की तरह सोच ,,,,,,,,,,,,,
काफी देर बहस के बाद भी परिणाम निकला शून्य……….
.एक दिन मैंने देखा दो लोग उस बच्चे को घसीटते हुए ले जा रहे थे ………..मैं जल्दी से दफ्तर से निचे उतरा और उन लोगो को रोका,,,,पहेल तो वो कहानिया बनाने लगे ,,,मगर बाद में पता चला ये लोग ऐसे ही मासूम बच्चो को उठा ले जाते है और उनसे भीख मंगवाते है और न जाने कितने ऐसे गैर कानूनी काम कराते है ………….मेरे विरोध करने पर वहां खड़े लोग भी मेरे समर्थन में आ कर बोलने लगे,,,भीड़ देख वो दोनों भाग गए ,,,,,,,,,,,,,परन्तु मैंने उस भीड़ को भी नही खूब सुनाई , जो तमासा देख रही थी मगर उस मासूम को बचाने के लिए आगे नही आ रही थी,,,,,तभी पीछे से एक आवाज़ आई ” अगर इस बच्चे से इतनी हमदर्दी है तो इसे अपने साथ क्यों नही ले जाते? ” पहले तो मुझे बुरा लगा, मगर फिर मैंने सोचा इसमें बुरा है भी क्या? अगर मैं इसके इतना भी कर सकू तो ये क्या कम है ……………
.और मैं उसे अपने घर ले आया और पूरी बात अपनी पत्नी को बताई ,,,,पूरी बात सुनने के बाद मेरी पत्नी ने बस इतना कहा कोई जरुरत नही है घर को अनाथालय बनाने की हां अगर इससे घर का काम लेना है तो बोल दो, फिर मैं इसको यहाँ रखने की सोच सकती हूँ ,,,,,
परन्तु ये बात मुझे पसंद नही आई…..और अगली सुबह मैं उसे अनाथालय लेके गया परन्तु वहां भी तरह के सवाल किसका बच्चा है कहा से मिला ? कितने दिनों से तुम्हारे साथ ? इसे अभी तक क्या क्या काम कराया ? POLICE को बताना पड़ेगा ? सवालो की बोछार से मैं भीगता इसे बेहतर मैं उसे अपने साथ ले जाना समझा ……और दिन तक वो मासूम फिर नुक्कड़ की उसी चाय की दुकान के पास था और मैं अपने दफ्तर में ……….
.उस रात फिर बहुत जोर की बरसात हुयी ,,,मैंने टी.वी. पे समाचार सुने तो पता चला आज शहर में जगह जगह पे पानी भरा है ………रात भर बादल बरसे ,,,मैं भी सो गया,,,सुबह उठा तो देखा मौसम बहुत सुहाना था,,,,,,,मैं दफ्तर पोहचा तो देखा नुकड़ पे काफी भीड़ थी….
.पास जाके देखा तो उस मासूम को अपने रहने के लिए सबसे पवित्र और सुरक्षित जगह मिल चुकी थी, भगवान् की गोद…..बरसात का पानी पेट में भरने की वजह से उस मासूम की मौत हो चुकी थी…..कुछ लोगो ने लावारिश लाश को उठाने वाली गाडी को बुलाया था , मगर मैंने मना कर दिया और उसके अंतिमसंस्कार का जीमा खुद उठाया , अगर थोड़ी हिम्मत कर के अगर मैं इसे अपने घर में रख लेता तो आज ये नन्ही सी जान जिंदा होती……..एक मासूम की मौत का क़र्ज़ था जो मुझे शायद ऐसे ही चुकाना था ,,,,,,,,,,,,,,,,,
Read Comments