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इतिहास की परीक्षा…… एक हास्य कविता

Main Aur Meri Tanhai
Main Aur Meri Tanhai
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इतिहास की परीक्षा थी उस दिन , चिंता से ह्रदय धडकता था
थे बुरे शकुन घर से चलते ही , बायाँ हाथ फड़कता था

मैंने सवाल जो याद किये , वे केवल आधे याद हुए
उनमें से भी कुछ स्कूल तलक , आते आते बर्बाद हुए

तुम बीस मिनट लेट , द्वार पर चपरासी नें बतलाया
मैं मेल ट्रेन की तरह दौड़ता , कमरे के भीतर आया

परचा हाथों में पकड़ लिया , आखें मूंदी तब झूम गया
पढ़ते ही छाया अन्धकार , चक्कर आया सर घूम गया

यह सौ नंबर का परचा है , मुझको दो की भी आस नहीं
चाहे सारी दुनिया पलटे , पर मैं हो सकता पास नहीं

ओ प्रश्न लिखने वाले , क्या मुह लेकर उत्तर दें हम
तू लिख दे तेरी जो मर्ज़ी , ये परचा है या Atom Bomb

तूने पूछे वही सवाल , जो जो मैंने थे रटे नहीं
जिन हाथों नें ये प्रश्न लिखे , वे हाथ तुम्हारे कटे नहीं

फिर आँख मूंदकर बैठ गया , बोला भगवान् दया कर दे
मेरे दिमाग में इन प्रश्नों के उत्तर ठूस ठूस भर दे

मेरा भविष्य है खतरे में , मैं झूल रहा हूँ आयें बायें
तुम करते हो भगवान् सदा , संकट में भक्तों की सहाय

जब ग्राह ने गज को पकड़ लिया तुमने ही उसे बचाया था
जब दुपद -सुता की लाज लुटी , तुमने ही चीर बढ़ाया था

द्रौपदी समझ करके मुझको , मेरा भी चीर बढ़ाओ तुम
मैं विष खाकर मर जाऊँगा , वर्ना जल्दी आ जाओ तुम

आकाश चीर कर अम्बर से , आई गहरी आवाज़ एक
रे मुरख ! व्यर्थ क्यूँ रोता है , तू आँख खोलकर इधर देख

गीता कहती है करम करो , फल की चिंता मत किया करो
मन में आये जो बात उसी को , पर्चे में लिख दिया करो

मेरे अंतर के पात खुले , पर्चे पर कलम चली चंचल
ज्यों किसी खेत की छाती पर , चलता हो हलवाहे का हल

मैंने लिखा पानीपत का दूसरा युद्ध, हुआ सावन के मौसम में
Japan Germani बीच हुआ , अठारह सौ सत्तावन में

लिख दिया महात्मा बुध , महात्मा गाँधी के चेले थे
गाँधी जी के संग बचपन में वो आँख मिचौली खेले थे

राणा प्रताप नें गौरी को , केवल दस बार हराया था
अकबर नें हिंद महा सागर , अमरीका से मंगवाया था

महमूद गजनबी उठते ही , दो घंटे रोज़ नाचता था
औरंगजेब रंग में आकर , औरों की जेब काटता था

इस तरह अनेकों भावों से , फूटे भीतर के फव्व्वारे
जो जो सवाल थे याद नहीं , वे ही पर्चे पर लिख मारे

हो गया परीक्षक पागल सा , मेरी copy को देख देख
बोला इन सब छात्रों में , बस होनहार है यही एक

औरों के पर्चे फेंक दिए , मेरे सब उत्तर छांट लिए
Zero नंबर देकर बाकी के सारे नंबर काट लिए ….

.

लोग अक्सर औरो की कीमती चीज़ ले लेते है मगर उनको धन्यवाद कहना भूल जाते है ,,,,रीना जी और मेरी और से इस कविता के मूल कवि ॐ प्रसाद आदित्य जी को इस हास्य कविता के लिए धन्यवाद करता हूँ,,,आज वो हमारे बीच नही है, मगर उनकी ये कविता हमेशा हमारे बीच रहेगी ….

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