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आज रविवार ,,मैं और मेरा 7 वर्ष का बेटा, टी.वि. पे अपनी नज़रे गडाए भारत-पाकिस्तान के बीच होने वाले क्रिकेट मैच के शुरु होने का इंतजार कर रहे थे …..मेरा बेटा विज्ञापन बड़े चाव से देख रहा था, जबकि मैं उसे कह रहा था कि जब तक मैच शुरु न हो, तब तक किसी और चैनल पे लगा ले …मगर उसने मेरी एक न सुनी ……….
खेल शुरु हो गया, पहली पारी पाकिस्तान की थी, पाकिस्तान के खिलाडी जल्दी जल्दी आउट होके वापस पवेलियन लौटने लगे, मेरा बेटा ये देख के बहुत खुश था और मैं भी बहुत खुश था, आखिर जीत हमारी हो रही थी, मगर मैं सिर्फ इसे खेल समझ के देख रहा था और इस खेल का लुफ्त उठा रहा था ,,,,जल्दी ही पाकिस्तान की पारी समाप्त हो गयी,,,,
मेरा बेटा अपने दोस्त के घर तक गया, जो की हमारे ही पड़ोस में रहता है ,,,,और थोड़ी देर में मेरा बेटा दौड़ता हुआ मेरे पास आया और बोला ” पापा, मैं मंदिर जाऊ, अपने दोस्त के साथ” मैंने पूछा ” मंदिर क्यों” बेटा : पापा भारत की जीत के लिए प्रार्थना करूँगा, मेरा दोस्त और उसके मम्मी-पापा भी जा रहे है, आप भी चलो” मैंने कहा ” बेटा! ऐसा नहीं होता” मगर मेरा बेटा जिद्द पे अदा था, और उसे प्यार से समझाना जरुरी था, इसलिए मैंने बोला ” देखो बेटा, मैदान में कौन खेल रहा है? खिलाडी, है न ,,उसने सर हिला के हां में सहमति दी, तो फिर खुद सोचो, भगवन की प्रार्थना करने से वो कैसे जीत सकते है, बेटा खेल तो खिलाडी ने खेलना है, भगवन ने नहीं, तो फिर इस काम के लिए भगवान् को क्यों तंग करना,,जीत हार तो खिलाडी के प्रदर्शन पर निर्भर होती है, न की भगवान् के आगे धुप जलाने से ”
वो कुछ न बोलते हुवे, अनमने मन से कुर्सी पे बैठ गया,,, तभी भारत की पारी शुरु हो गयी,, और मेरे बेटे का ध्यान दुबारा खेल पे केन्द्रित हो गया ….
खेल शुरु होते ही भारत ने अपना पहला खिलाडी बिना किसी रन के गवा दिया, और मेरे बेटे ने मुझे कुछ ऐसे देखा, जैसे ये सब मेरी वजह से हुआ हो ….
परन्तु धीरे धीरे भारत ने रन बनाना शुरु कर दिया और हर चौके-चक्के पे मेरा बेटा ऐसे खुश होता, जैसे ये खेल वही खेल रहा हो, और लगभग पूरा भारत भी मेरे बेटे की तरह खुश था….
और मैं भी खेल देखने में मग्न हो गया, भारत जीत गया, चारो तरह खुशियों की लहर दौड़ने लगी, मैं भी खुश था, मेरा बेटा इस पल को celebrate करना चाहता था, तो वो फ्रिज से कोल्ड ड्रिंक और रसोई से स्नैक्स ले कर आ गया..
हम भारत की जीत का जश्न मन रहे थे कि तभी मेरे बेटे कि आवाज़ ने मेरा ध्यान भंग किया “पापा वो भी तो हमारे जैसे है, फिर हम उनसे जितने पर, इतनी ख़ुशी क्यों मनाते है, जैसे कोई त्यौहार हो” मैंने जवाब दिया ” हां, वो भी तो हमारे जैसे ही है, हमारी तरह तो दिखते है, हमारी तरह रहते है, मगर उफ़ ये मानसिकता, हमे अलग अलग रखती है ”
तभी उसका ध्यान बाहर खेल रहे है अपने दोस्त को देख, उसके पास चला गया,,,और ये बात यही समाप्त हो गयी ……….
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