तुझे कैसे सुनाऊ , दर्द-ऐ -मोहब्बत,
ये फ़साना लफ्जों में नहीं, आँखों से बयां होता है !!
लोग ढूंढते है मेरे आशियाने में उजाला,
मेरे घर में उजाला तो, जला के दिल होता है !!
इन दरारों से आने वाली किरण, छेदती है जिस्म को,
जो रूह को छेद पाए वो किरण लाऊ कहाँ से !!
देखा था तुझे एक दिन अपने आँगन में,
वो आँगन ही न रहा , तुझे पाऊं कहाँ पे!!
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