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क्योंकि उनके पास प्रेमिका नामक बटेर (एक चिड़िया का नाम) जो है, हाल तो उनका बुरा है जो अकेले है| एक दिन मैं अपने मित्र के विवाह से लौट के आया, ओर अपने पुराने दिन सोचने लगा !
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” रिश्ते में तो हम तुम्हारे बाप लगते है, नाम है शहंशाह “ पिताजी के कानो तक ये आवाज़ चली गयी, उन्हें जाने क्या गलतफेमी हुयी …उन्होंने कमरे में अपने कदम रखते ही, पहले कुछ प्रवचन दिए ओर उसके बाद अपने हाथो का आशीर्वाद, पिता जी के वो शब्द आज भी कानो में गुन्जते है ” बाप बनेगा, शक्ल देखी है आईने में, कोई शादी भी नहीं करेगा तुझसे,” पिता जी ने उस दिन इतना प्यार बरसाया की कुछ हफ्तों तक तो मैं अमित जी की तरह झुक के, कमर पे हाथ रख के चलता रहा, कुछ महीनो बाद ये बात तो मैं भूल गया, मगर अब लगता है ये पिता जी के प्रवचनों का ही असर है, तभी आज तक मैं कुवारा हूँ , मेरी तो कोई प्रेमिका भी नहीं है!!!!!!!!
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माता जी -पिता जी का गृहयुद्ध देखता था तो सोचता था, कभी विवाह नही करूँगा, वो बात बात पे घर का बटवारा हो जाना, माता जी अक्सर मुझे अपने दल में लेना ओर मेरा भाई पापा के दल में शामिल हो जाना , मैंने उस दिन निश्चय किया मैं कभी शादी नहीं करूँगा मगर अब पछताता हूँ, कि मैं ऐसा क्यों सोचता था………
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धीरे धीरे मैं बड़ा होने लगा, मगर प्यार के खेल में हमेशा फ़ैल ही रहा | विवाह समारोह में जाता तो खाने-पीने तक तो मामला ठीक रहता , मगर जब दूल्हा-दुल्हन मंच पे आते तो, मेरे अंदर इर्ष्या का दानव हुंकार भरने लगता, कभी कभी तो हद हो जाती, मैं सपनो में खो जाता ओर दुल्हे की जगह खुद को महसूस करने लगता, इस आदत के कारण कई बार मुसीबतों में भी फसा ओर एक -दो बार सरकारी दामाद भी बनना पड़ा |
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क्योंकि ) के मंदिरों के चक्कर भी लगाये, मगर लोगो की बातों ने यहाँ भी साथ नहीं छोड़ा , लोग बोलते ” वो देखो वो देखो, ये वही है जो शिव मंदिर, देवी दर्शन के लिए जाता है” मगर लोगो का काम तो है ही बातें बनाना, ये सोच के चुपचाप कुवारेपन के आसु पी जाता |
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कभी कभार मन का गुबार निकलने हेतु दूसरों की शादी में अब्दुल्ला दीवाना बन जाता हूँ……मगर जब भी किसी के विवाह समारोह में जाता हूँ तो मन ही मन में एक ही गीत बार बार दस्तक देता है ” दिल के अरमा, आसुओ में बह गए “
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