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कहना चाहती थी इतना तुमसे,
खुद से जुदा क्यों किया मुझे,
देखना चाहती थी दुनिया को,
महसूस किया, गर्भ में जिसे !!
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तुम्हारे चखे खट्टे-मिट्ठे व्यंजनों को
चखा मैंने भी था गर्भ में,
देखे थे कितने ख्वाब,
माँ, मैंने रह के तेरे गर्भ में !!
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गोद में रख कर सर, झूला झूलना चाहती थी मैं
सीने से लग कर, हँसना-रोना चाहती थी मैं
मीठी लोरियाँ सुन कर, सोना-जागना चाहती थी मैं
कल्पना-सुनीता जैसा बन, नाम रोशन करना चाहती थी मैं..
मगर …
तुमने जन्म दिया न मुझको
अपने हाथो मार दिया मुझको
मैं तो अपना अंग थी तुम्हारा
फिर क्यों मौत के घाट उतार दिया मुझको?
चीखी-चिल्लाई मत मारो मुझको
सुनी न तुमने, एक मेरी माँ
दम घोट के मेरा, तुम भी तो
सिसक रही थी, घर में कोने में !!
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याद करो माँ तुम भी, वो दिन
नानी गर्भ में जब, पाल रही थी तुमको
मार दिया होता तुमको भी तो
आज कहाँ तुम भी होती
कन्या भ्रूण हत्या का शिकार
एक कन्या और होती !!!!!
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