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खुद के हाल पर, हँसाती है ज़िन्दगी
कभी बन हमसफ़र, रुलाती है ज़िन्दगी
मयखाने में भी प्यासा, रखती है ज़िन्दगी
भूखा सारी रात, सुलाती है ज़िन्दगी
क्या मैं कहूं , कितना कुछ सिखाती है ज़िन्दगी !!
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महफ़िल में भी तन्हा, नज़र आती है ज़िन्दगी
दुश्मनों से भी दोस्ती, निभाती है ज़िन्दगी
आन के नाम पर, जान भी लेती है ज़िन्दगी
जिंदे को भी, मुर्दा बनाती है ज़िन्दगी
क्या मैं कहूं , कितना ……………
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महलो को खंडहर, खंडहरो को महल बनाती है ज़िन्दगी
रंग को बेरंग, बेरंग को रंगीन बनाती है ज़िन्दगी
रक्त की कीमत, दिर्हम से लगाती है ज़िन्दगी
ताज की खातिर, अपनों से लड़ती है ज़िन्दगी
क्या मैं कहूं कितना……………..
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गम के काफिले में, खुशियों से मिलाती है ज़िन्दगी
जन्मो के बिछड़ो को भी, रु-ब-रु कराती है ज़िन्दगी
रोज नये लैला मजनू, पैदा कराती है ज़िन्दगी
रात के बाद हो सुबह, ये दस्तूर बनाती है ज़िन्दगी
क्या मैं कहूं , कितना कुछ सिखाती है ज़िन्दगी !!
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