Main Aur Meri Tanhai
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धर्म-मजहब के नाम पर,
तुम लड़ सकते हो, मैं नहीं
अपने शब्दों की नुमाइश बेहतर,
तुम कर सकते हो, मैं नहीं
.
मैं, मैं क्या कर सकता हूँ ???
मैं तो बस….
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मैं तो आज भी ले सकता हूँ
बारिश का मज़ा
गलतियाँ कर पा सकता हूँ सजा
कल्पनाओ से निखार सकता हूँ धरा
बात दिल की कहता हूँ सदा…….
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रो कर मना सकता हूँ उन्हें
रूठ के सता सकता हूँ उन्हें
नादानियो से हँसा सकता हूँ उन्हें
क्या तुम कर सकते हो ?
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कदाचित नहीं
.
क्योंकि परिपक्वता तुम्हारा बन्धन है
और नादानियां मेरी आज़ाद उड़ान …..
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